परिभाषा :- Tally ने एक ऐसा software तैयार किया गया है जिसके अंदर अकाउंट और इन्वेंटरी दोनों का कार्य किया जा सकता है ! हम किसी भी प्रकार के धन की लेन देन या समान (माल़) का आदान प्रदान का पूरा हिसाब किताब रख सकते है
Accounts :- इसमें हम पैसों कि लेनदेन का हिसाब रखते है
Inventory :- इसमें हम समान या माल की लेनदेन का हिसाब रखते है और इन सब एंट्रीज को हम सुरक्षित और सही तरीके से टैली 9.0 ERP में एंट्री कर सकते है
Tally को Start करने का तरीका
सर्वप्रथम हमे Computer के desktop पर tally नाम का एक icon प्रदर्शित होगा जिस पर double click करने पर एक window open होगी जिसमें alt+w button दबाने पर हम work in educational mode से सीधे tally में प्रवेश करते है अब हमे एक new company बनानी होती है जिसके लिए हम Alt+F1 key का प्रयोग करते है इसके बाद हमारे सामने company info. खुल जाता है
इसके बाद create company पर हम click करते हैं तो हमारे सामने एक फॉर्म खुल जाता है जिसे company creation कहते है जिसे फॉर्म को हम इस प्रकार fill करते है
1. Directory :- सबसे पहले हम डायरेक्टरी को सेट करेंगे यहां पर by Default C Drive होती है जिसे हम Change करके D Drive लेंगे क्योंकि C Drive में हमारा ऑपरेटिंग सिस्टम होता है यदि C Drive में ऑपरेटिंग सिस्टम corrupt हो जाता है या Windows उड़ जाती है तो हमारे द्वारा Save की गई Tally भी Delete हो जाएगी और हमारा डाटा खत्म हो जाएगा इसलिए हम डायरेक्टरी में D drive को Select करते हैं कंप्यूटर की सबसे पहली ड्राइव C Drive होती है उसके अंदर हम Tally को save नहीं करेंगे और हम डायरेक्टरी को चेंज करके D Drive लेंगे इसलिए हम Tally को C Drive में install नहीं करते हैं
2. इसके बाद हम Name में कंपनी का नाम Fill करेंगे
Primary Mailing details में Mailing name :- कंपनी का नाम अपने आप आ जाएगा इसके बाद हम एड्रेस को Fill करेंगे उसके बाद हमें Country डालनी है उसके बाद State, pincode डालना है यह सब भरने के बाद हम
3. Contact Detail में फोन नंबर ,मोबाइल नंबर, फैक्स नंबर, ईमेल आईडी और वेबसाइट को Fill करेंगे
4. Books and financial year details :- हमारा एकाउंट्स का Financial year 1 अप्रैल से शुरू होता है और 31 मार्च को खत्म होता है इसलिए हर कार्यालय में चाहे वह बैंक हो या फिर कोई भी सरकारी या प्राइवेट ऑफिस हो उस में मार्च के महीने में अकाउंट की Closing होती है जिसमें वह कार्यालय उस सत्र के सभी अकाउंट को पूर्ण रूप से maintain करके अपनी बैलेंस sheet को पूर्ण रूप से तैयार करके Clear करते हैं इसमें Financial year begins from 1 अप्रैल से शुरू होता है और Books beginning from भी उसी दिन से शुरू होता है इसमें जो सत्र फाइनेंसियल ईयर में आता है वही बुक्स बिगिनिंग में भी आता है क्योंकि हमारा financial year शुरू होता है तभी हमारी Books को भी open किया जाता है जिसमें Entry होती है
5. Security Control :- जैसा कि हम जानते हैं कि Tally एक बहुत संवेदनशील सॉफ्टवेयर है जिसमें किसी भी कंपनी के पूरे डिटेल्स होते हैं जो कि बहुत कीमती और खुफिया रूप से रखे जाते हैं जिससे के कोई भी बाहरी व्यक्ति हमारी कंपनी की आंतरिक जानकारी प्राप्त ना कर सके इसके लिए हम टैली में कंपनी का एक ग्रुप पासवर्ड डालते हैं और पासवर्ड के बाद कंपनी का नाम Show नहीं होगा उसका एक code होगा जिसके साथ पासवर्ड का प्रयोग करके ही हम कंपनी को Access कर पाएंगे इस प्रकार हमारी कंपनी पूर्ण रूप से सुरक्षित रहती है सिक्योरिटी कंट्रोल का यह उपयोग कंपनी को सुरक्षित रखता है
6. Base currency information :- सबसे पहले Base currency symbol होता है जिसके अंदर हमारे देश के करेंसी का चिन्ह होता है रुपए के रूप में उसके बाद हमारी करेंसी का Formal Name - INR होता है उसके बाद Suffix symbol to amount - NO रहने देते हैं और Add space between amount and symbol को हम Yes करते हैं क्योंकि हमको Amount और Symbol के बीच में जगह छोड़नी होती है इसके बाद show amount in millions ऑप्शन को हम No करते हैं क्योंकि हमारे यहां पर मिलियंस का कोई use नहीं होता है इसके बाद Number of decimal Places - 2 रखते हैं क्योंकि हमारे पैसे 2 डिजिट तक होते हैं जैसे 99 पैसे उसके बाद 1 रूपीस बन जाता है इसके बाद Word representing amount after decimal में हम Paise को लेते हैं क्योंकि रुपए और पैसे में हमारी करेंसी होती है उसके बाद No. of decimal places for amount in words - 2 ही लेते हैं इस प्रकार से कंपनी क्रिएशन का यह फॉर्म पूर्ण रुप से Fill हो जाता है उसके बाद enter करके हम कंपनी में accept ऑप्शन को yes करते हैं तो कंपनी create हो जाती है
Shut Company (Alt+F3) :- यदि हमें Tally किसी कंपनी को बंद करना है उसके लिए shut कंपनी का प्रयोग किया जाता है जैसे मान लीजिए हमने हमारी कंपनी खोली परंतु लिस्ट ऑफ सिलेक्टेड कंपनी में कई और कंपनी भी हमारी कंपनी के साथ में show होती हैं तो उन खुली हुई कंपनी को बंद करने के लिए Alt+ F3 कमांड के द्वारा हम company info. में पहुंच जाते हैं जहां पर हम Shut company को select करके जितनी भी दूसरी कंपनी open है उन कंपनी को हम एक-एक करके बंद कर सकते हैं और केवल हमारी कंपनी को हम open रख सकते हैं जिससे कि हम अपनी कंपनी में अपनी सुविधा अनुसार काम कर सकें और दूसरी कंपनी हमारे सामने show नहीं हो I
Company Alter (Alt+F3) :- यदि हमने कोई कंपनी बनाई है और बनाने के बाद हमने यह देखा कि कंपनी के form में कोई गलती रह गई है तो उसको सुधारने के लिए हमें कंपनी के Alter ऑप्शन में जाकर उसे ठीक करना पड़ेगा इसके लिए Alt+F3 key keyboard में press करके कंपनी इन्फो में पहुंचेंगे जिसमें हमें Alter ऑप्शन दिखाई देगा जिसे select करके जैसे ही enter करेंगे तो हमारे सामने हमारी कंपनी का form खुल जाएगा अब हम जो भी फॉर्म में mistake है उसे ठीक कर लेंगे इसी ऑप्शन में एक और प्रक्रिया भी होती है उसमें हम यदि अपनी कंपनी को पूर्ण रूप से समाप्त करना चाहते हैं या Delete करना चाहते हैं तो हमें खुली हुई कंपनी के form में Alt+D कमांड कीबोर्ड से देनी पड़ेगी और Tally हमसे पूछेगा कि इस कंपनी को डिलीट करना है तो हम उसे yes कर देंगे इस प्रकार कोई भी कंपनी permanent Delete हो जाती है
Tally विश्व स्तर पर प्रयोग होने वाला Account का एक ऐसा पैकेज है। जिसके अन्दर हम किसी भी company का पूर्ण कार्य बिना त्रुटि के संचालित कर सकते है इसमे हम हर के समूह (group) को तैयार कर सकते है और कुछ समूह (groups) हमे पहले से ही tally में तैयार मिलते है
जैसे :- Fixed Assets, Indirect expenses,indirect income,Bank account, Capital Account, Sundry creditors, Sundry Debtors तैयार रहते है
Ledgers बनाते समय हम उन ledger को पहचानने के लिए समूह (groups) का प्रयोग करते है
जैसे : हमने bike का ledger बनाया तो वह fixed Assets (group) में enter किया जायेगा
Tally में group एवं ledger हमे gateway of tally में Masters के अंदर Accounts Information में प्राप्त होता है
ग्रुप क्या होता है?
Groups एक तरह का Collection होता है क्योंकि Tally ERP में Ledger को बनाते समय हमको उसे एक Group में रखना होता है। Tally ERP में प्रतेक Group का अपना एक Particular Nature Define किया गया है। ... Tally ERP 9 में कुल 28 Groups होते है और जिनमे 15 Primary Group होते है और 13 Secondary Group होते है।
Group जिसे हम हिन्दी मे समुह कहते हैं। एक ही प्रकार के खातों (Ledgers) को एक ही समुह (Group) मे रखा जाता है। अर्थात् Tally मे हम जो भी new Ledger बनाते हैं। उसे कोई ना कोई Group दिया जाता है। और Group का सही निर्धारण करना बहुत महत्वपूर्ण होता है।
जैसा कि हम सब जानते हैं कि ग्रुप एक समूह होता है जिससे किसी भी वस्तु की उसके समूह से पहचान होती है जैसा कि हमें पता है कि tally में किसी भी लेजर की पहचान उसके ग्रुप से होती है जैसा कि हमें पता हैI
अब हम Tally मे उपस्थित सभी List of Groups को एक - एक कर के समझते हैं, की किस under Groups के अंदर किस Ledger को शामिल किया जाता है।
Single Group
Create:- सिंगल ग्रुप के Create option में हम कोई भी नया Group तैयार कर सकते हैं वैसे तो Tally ने हमें सारे ग्रुप प्रदान किए हैं परंतु फिर भी हमें यदि कोई New Group बनाना है तो हम क्रिएट ऑप्शन का use करते हैं
Display:-सिंगल ग्रुप के Display option में हम उन सभी ग्रुप्स को देख सकते हैं जो पहले से बने हुए हैं या हमारे द्वारा बनाए गए हैं उन सभी ग्रुप को डिस्प्ले ऑप्शन में देखा जा सकता है
Alter:- यदि हमने Group बनाते समय कोई गलती कर दी है तो उस ग्रुप को दोबारा सुधारने के लिए हम Alter ऑप्शन में जाते हैं और यदि हमें कोई ग्रुप डिलीट करना है तो भी हम Alter ऑप्शन में जाकर (Alt+D) डिलीट कर सकते हैं
सभी ग्रुप के बारे में विस्तार से जानकारी इस प्रकार है
1.Bank Accounts :- इस Group में हमारी कंपनी के सभी बैंक खातों को शामिल किया जाता है। बैंक लोन अकाउंट को छोड़कर। जैसे :-
IDBI Bank A/c
HDFC Bank A/c
Bank of India A/c
IDFC Bank A/c
2. Bank OCC A/c :- Bank OCC A/c यानि Bank open cash credit A/c इस Group में सभी Bank Loan OCC A/c को शामिल किया जाता है। यदि हमने किसी बैंक से लोन लिया है। तो उस खाते को Bank OCC A/c Group में शामिल किया जायगा। जैसे :-
IDBI Bank Loan A/c
HDFC Bank Loan A/c
Bank of India Loan A/c
IDFC Bank Loan A/c
3. Bank OD A/c :- Bank OD A/c यानि Bank Overdraft A/c इस Group में सभी Bank Overdraft A/c को शामिल किया जाता है। यदि हमने किसी बैंक में खाते को Overdraft किया है। तो उसे इस Group में शामिल किया जाता हैै। जैसे :-
IDBI Bank OD A/c
HDFC Bank OD A/c
Bank of India OD A/c
IDFC Bank OD A/c
4.Branch/Divisions :- यदि हमारी कंपनी में बड़े पैमाने पर काम होता है अर्थात हमारी कंपनी नई किसी अन्य क्षेत्र में भी Branch है। और हमें उन ब्रांचो से भी पैसा आता है। तो उस सभी Branch/Divisions से संबधित खातों को Branch/Divisions Group में रखा जाता है। इस ग्रुप का नेचर Asset होता है। जैसे :-
xyz Textiles Jaipur A/c
xyz Textiles Indore A/c
xyz Textiles Bhopal A/c
xyz Textiles Surat A/c
5. Capital Account :- इस ग्रुप में हम जहां से भी कैपिटल अर्थात पूंजी प्राप्त करते हैं जो कि हमारी कंपनी के हिस्सेदारी में लगाया जाता है और जो भी व्यक्ति कंपनी में पूंजी को हिस्सेदारी के रूप में लगाता है वह सभी हिस्सेदार या पूंजी लगाने वाले व्यक्ति कैपिटल अकाउंट के समूह के अंतर्गत आते हैं इस Group में Company के मालिक के खातों (Ledgers) को शामिल किया जाता है। जैसे :- यदि किसी कंपनी का मालिक Ram है। तो
Ram A/c
Arun Drawing A\C
Share Capital A\C
Equity Capital A\C
6. Cash-in-Hand :- Tally में Cash का Ledger बनाने की जरुरत नहीं होती है। क्योकि Tally में पहले से ही Cash का Account बना होता है। फिर भी कभी - कभी कंपनी द्वारा Petty Cash का खाता(Ledger) बनाया जाता है। जैसे :-
Petty Cash A/c
Cash at Jaipur Branch A\C
7. Current Assets :- Current Assets जिसे हम चालू सम्पत्तिया भी कहते है। यानि वे सभी प्रकार की सम्पत्तियाँ जिसे आसानी से cash मे बदला सकता है। Current Assets कहलाती है। यदि हमने किसी फर्म, कंपनी या व्यक्ति, को Advance Payment दिया है। तो उस Ledgers को हम Current Assets Group देगे। जैसे :-
Prepaid Maintenance Expense
Prepaid Rent
Mutual Fund
CGST Credit
SGST Credit
IGST Credit
Prepaid Insurance Charges
8. Current Liabilities :- Current Liabilities जिसे हम चालू दायित्व भी कहते हैं। यदि हमने किसी फर्म, कंपनी या व्यक्ति आदि से कोई Advance Payment या Loan लिया है। तो उस Ledgers को हम Current Liabilities Group देगे। जैसे :-
All Bill Payable
CGST Payable
SGST Payable
IGST Payable
9. Deposits (Asset) :- यदि हमने हमारे व्यवसाय मे यदि कोई investment या कोई fix Deposits किया हो और हमे पता है कि इतने Year बाद हमारा investment पूरा होगा तो हम ऐसे Ledger को बनाते समय Deposits (Assets) Group देगे। जैसे :-
Security Deposit
Telephone Deposit
Sales Tax Deposit
Rent deposit
Office Rent Deposit
Electricity Deposit
Fixed Deposit
All Type Deposit etc.
10. Direct Expenses :- यदि हमारे व्यवसाय मे कोई प्रत्यक्ष व्यय होते है। अर्थात् ऐसे व्यय जो वस्तुओ के खरीदते समय या वस्तुओ के उत्पादन के समय लगते हैं। तो उन सभी व्ययों के Ledger बनाते समय उन्हें Direct Expenses Group देगे। जैसे :-
Sizing Charges
Freight Exp.
Hammali Exp.
Transport Exp.
Weaving Charges etc.
11. Direct Incomes: - यदि व्यवसाय मे किसी तरह की प्रत्यक्ष आय होती है। अर्थात ऐसी आय जो माल (Goods) को sale करने से संबंधित हों तो ऐसी आय के Ledger बनाते समय Direct Income Group देगे। जैसे :-
Freight Charges Income
Transport Charges Income
All Income Form Service etc.
12. Duties & Taxes :- व्यवसाय मे सभी प्रकार के Tax से संबंधित खातों (Ledgers) के लिए Duties & Tax Group दिया जाता है।जैसा कि हम जानते हैं सभी को अपनी आय के ऊपर टैक्स देना पड़ता है और यदि कोई व्यक्ति टैक्स नहीं देता है तो सरकार उसके घर पर छापा मारकर उसकी संपत्ति को हरण कर लेती है एवं जिस व्यक्ति की आय कम है तो भी उसे PAN (Permanent Account Number) कार्ड नंबर लेना अति आवश्यक है और यदि उसकी salary कम भी है तो भी उसे आयकर विभाग के No Dues फॉर्म को भरना पड़ता है और यदि कोई व्यक्ति टैक्स की श्रेणी में नहीं आता है तो भी सरकार अलग-अलग तरीकों से उससे टैक्स ले ही लेती है जैसे:- रोड टैक्स, नगर निगम टैक्स, टोल टैक्स, गाड़ी का रजिस्ट्रेशन, गाड़ियों का परमिट, प्रदूषण टैक्स इस प्रकार से कई टैक्स होते हैं
VAT (Value Added Tax) :- यह टेक्स हमारे घरेलू उपयोग में आने वाली वस्तुओं में लगाया जाता है जैसे साबुन, तेल, टीवी, फ्रिज आदि इनकी वैल्यू पर लगने वाले टैक्स को स्टेट गवर्नमेंट लेती है
TDS (टैक्स डिडक्शन सर्विसेज):- यह टेक्स उन सभी वस्तुओं पर लगाया जाता है जो खरीदी या बेची जाती हैं जैसे:- एक्सपोर्ट टैक्स, इंपोर्ट टैक्स आदि I
GST (Goods and Services Tax):- यह एक ऐसा टैक्स है जिसमें सरकार के नए नियम अनुसार सारे टैक्सेस को सम्मिलित कर दिया गया है जिसे जीएसटी (GST) कहते हैं चाहे वह टेक्स्ट स्टेट का हो या सेंट्रल गवर्नमेंट का उन सभी टैक्सेस को जीएसटी के रूप में एकत्रित कर दिया गया है I
केंद्र के टैक्स इस प्रकार हैं
additional duties of Excise, Central Excise duties , service taxes, excise duties levied under medicinal and toiletries preparation act , additional duties of custom,
surcharges and Cesses :- यह वह टैक्स है जो एक स्टेट से दूसरे स्टेट में एंटर होते समय लगता है एक शहर से दूसरे शहर जाने में समय लगता है इसलिए सर चार्ज लगता है
स्टेट के टैक्स इस प्रकार हैं
purchase taxes, Central sales taxes, state VAT, taxes on batting and gambling and lottery, entertainment taxes, luxury taxes, entry taxes, taxes of advertisement, surcharges and Cesses.
इस प्रकार हमने जो सेंट्रल टैक्स (Central taxes) और स्टेट टैक्स (state taxes) लिखे हैं इन दोनों टैक्सेस को मिलाकर जीएसपी (GST)तैयार किया गया है
GST को 3 भागो में विभाजित किया गया हैI
CGST (Central Goods and Services Tax):- इस टैक्स के अंतर्गत एक ही स्टेट के अंदर एक शहर से दूसरे शहर में माल के आदान-प्रदान पर लगने वाला टैक्स जो कि सीधा केंद्र सरकार के पास पहुंचता है एवं स्टेट पर माल के आदान-प्रदान पर जितने भी taxes में सेंट्रल गवर्नमेंट का हिस्सा होता है वह सभी टैक्सेस सीजीएसटी के माध्यम से सेंट्रल गवर्नमेंट तक पहुंच जाता है I
SGST (State Goods and Services Tax):- इसमें स्टेट के साथ समस्त कर विद्यमान होते हैं इस टैक्स को स्टेट के जितने भी कर हैं उन सभी के लिए इस्तेमाल किया जाता है यदि कोई सामान एक शहर से दूसरे शहर में एक ही राज्य से आदान-प्रदान हो रहा है तो उसमें CGST और SGST दोनों Taxes को मिलाकर लोकल(Local) जीएसटी तैयार होती है इसलिए यह स्टेट का कर होता है जो एसजीएसटी (SGST) कहलाता है
IGST (Integrated Goods and Services Tax) :- यह वह टैक्सेस होता है जब कोई भी Goods यानी माल का आदान-प्रदान एक राज्य से दूसरे राज्य में प्रवेश करता है तब आईजीएसटी का प्रयोग होता है क्योंकि इसमें केंद्र और राज्य सरकार दोनों का हिस्सा होता है जो केंद्र और राज्य सरकार के पास सुरक्षित रूप से पहुंच जाता है यह एक ही बार में पूर्ण रूप से प्राप्त होने वाला टैक्स है जो जीएसटी में सम्मिलित है IGST भारत में आयात और भारत से निर्यात दोनों मामलों में वस्तुओं और/या सेवाओं की किसी भी आपूर्ति पर लागू होता है।
(GST)जीएसटी टैक्स के द्वारा कोई भी ठेकेदार, वर्कर या कमीशन एजेंट सरकार के टैक्सेस को चोरी नहीं कर सकता इसलिए जीएसटी पूर्ण रूप से सुरक्षित एवं अभेद है अतः इस प्रकार जितने भी Taxes का हमने बोध किया है वह समस्त टैक्सेस Duties and Taxes ग्रुप(Group) में बनाए जाते हैंजैसे :-
Input CGST
Input SGST
Input IGST
Input Cess
Output CGST
Output SGST
Output IGST
Output Cess
TDS Payable's
Input Vat Tax
Output Vat Tax
Sales Tax
Tds on rent
Excise Duty Payable
Service Tax Payable etc.
13. Expenses (Direct) :- यदि हमारे व्यवसाय मे कोई प्रत्यक्ष व्यय होते है। अर्थात् ऐसे व्यय जो वस्तुओ के खरीदते समय या वस्तुओ के उत्पादन के समय लगते हैं। तो उन सभी व्ययों के Ledger बनाते समय उन्हें Expenses (Direct) Group देगे। जैसे :-
Freight Expenses
Wages Expenses
Freight of Production
Carriage Expenses
Power Expenses etc.
14. Expenses (Indirect) :- यदि हमारे व्यवसाय मे कोई अप्रत्यक्ष व्यय होते है। अर्थात् ऐसे व्यय जो वस्तुओ के खरीदते समय या वस्तुओ के उत्पादन के समय से संबंधित नहीं होते है। तो उन सभी व्ययों के Ledger बनाते समय उन्हें Expenses (Indirect) Group देगे। जैसे :-
Legal Expenses/Charges
Salary
Audit Fees
Professional Charges
Fuel Expenses A/c
Telephone charge
Postage & courier Expenses
Legal charge
Bank charges
Penalty
Interest Expense
Depreciation Expenses
Penalty
Tea & Water Expenses
All Indirect Expenses etc.
15. Fixed Assets :- व्यवसाय मे उपस्थिति सभी प्रकार की स्थाई संपत्तियों के Ledgers बनाते समय Fixed Assets Group देगे। सुई से लेकर एरोप्लेन तक सभी कंपनी की स्थाई संपत्ति कहलाती है ये स्थाई सम्पत्तियाँ व्यवसाय के संचालन मे भी सहायक होती है।
कंपनी की वह सभी चीजें जो स्थाई रूप से कंपनी की हैं जिसमें कंपनी की चल अचल पूर्ण संपत्ति का विवरण होता है
चल - वह संपत्ति जो चलाएं मान होती है उसे चल संपत्ति कहते हैं जैसे कार, बस, ट्रक, मोटरसाइकिल ,फोर्कलिफ्ट आदि इस प्रकार होने वाली संपत्ति चल संपत्ति कहलाती है
अचल- यह वह संपत्ति होती है जो एक स्थान पर स्थिर होती है जैसे कंपनी की बिल्डिंग, बांग्ला, मशीन गमला, कप ,प्लेट और कंपनी कि यहां तक की छोटी से छोटी चीज जिस पर कंपनी का मालिकाना हक है वह सब कंपनी की अचल संपत्ति होती है और चल अचल यह दोनों संपत्ति कंपनी का Fixed Assets होता है जैसे :-
Land
Computer
Printer
Bike
Laptop etc.
16. Income (Direct) :- यदि व्यवसाय मे किसी तरह की प्रत्यक्ष आय होती है। अर्थात ऐसी आय जो माल (Goods) को sale करने से संबंधित हों तो ऐसी आय के Ledger बनाते समय Income (Direct) Group देगे। जैसे :-
Freight Charges Income
Transport Charges Income
All Income Form Service etc.
17. Income (Indirect) :- यदि व्यवसाय मे किसी तरह की अप्रत्यक्ष आय होती है। अर्थात ऐसी आय जो माल (Goods) को sale करने से संबंधित नहीं होती है। ऐसी आय के Ledger बनाते समय Income (Indirect) Group देगे। जैसे :-
Interest Received
Discount Received etc.
18. Indirect Expenses :- ऐसे खर्च जो व्यवसाय मे वस्तुओं केे खरीदते समय या वस्तुओं के उत्पादन से संबधित नहीं होते हैं। तो ऐसे खर्चों के Ledgers बनाते समय उन्हें Indirect Expenses Group देगे। जैसे :-
Legal Expenses/Charges
Audit Fees
Professional Charges
Fuel Expenses A/c
Telephone charge
Postage & courier Expenses
Legal charge
Bank charges
Penalty
Interest Expense
Depreciation Expenses
Penalty
Tea & Water Expenses
All Indirect Expenses etc.
Office maintenance
Stationary
Printing Charges
Advertisement
Bill drawn
Commission Allowed
Taxi fare
Interest on loan
Repair charge
Sale tax
Trade account
Bad debts
Travelling
Free sample
Petty cashier
19. Indirect Incomes :- यदि व्यवसाय मे किसी तरह की अप्रत्यक्ष आय होती है। अर्थात ऐसी आय जो माल (Goods) sale करने से संबंधित नहीं होती है। तो उन सभी आय के Ledgers बनाते समय Indirect Incomes Group देगे। जैसे :-
Interest Received
Profit on the sale of old assets
Rent received
Discount Received act.
20. Investments :- यदि व्यवसाय में हम कोई लंबी अवधि के लिए निवेश करते है। और हमे पता ही नहीं होता है कि इस निवेश से Profit होगा या Loss होगा। तो ऐसे निवेश (Investments) के खातों (Ledgers) को Investment Group देगे। जैसे :-
Long term investment
Equity share A\C
Kisan vikas patra (post office)
Saving Bonds
National saving certificates (NSC)
Investment in Shares
Mutual Fund
Short Term Investment etc.
21. Loans & Advances (Asset) :- यदि हम व्यवसाय मे किसी पार्टी को Advance Payment या Loan देते हैं। तो ऐसे Ledgers को Loans & Advances (Asset) Group देते हैं। जैसे :-
Loan Give to Friends, Relatives and company. etc.
22. Loans (Liability) :- यदि हम व्यवसाय मे किसी पार्टी से Advance Payment या Loan लेते हैं। तो ऐसे Ledgers को Loans (Liability) Group देते हैं। जैसे :-
Loan From Outside Party etc.
23. Provisions :- उन सभी खातों (Ledgers) को Provisions Group देंगेे। जिनका भुगतान हमें भविष्य में करना होता है। जैसे :-
Audit Fees Payable
TDS Payable
All Type Payable
24. Purchases Accounts :- जब कंपनी किसी माल की खरीदारी करती है तो जो भी माल वह नगद में या उधार में खरीदती है तो उन सभी सामानों को हम Purchase अकाउंट में डालते हैं उदाहरण के रूप में कंपनी ने खरीदने बेचने के लिए जो माल खरीदा है जैसे Samsung TV , Sony TV and LED TV खरीदा तो यह सभी Purchase अकाउंट में आएंगे Iव्यवसाय में माल खरीदी (Goods Purchase) के सभी खातों (Ledgers) को Purchase Accounts Group देते है। तथा Purchase Return के खातों को भी यही Group दिया जाता है। जैसे :-
Purchase Local
Purchase A\C
Credit purchase
Trade discount of purchase
Delivery charges (in purchase Bill)
Cash Purchase
Purchase Interstate
Purchase Local Nil Rated
Purchase Interstate Nil Rated
Purchase (Composition)
Purchase Exempt (Unregistered Dealer)
Purchase Return etc.
25. Reserves & Surplus :- आरक्षितयाँ और अधिशेष से संबधित खातों को Reserves & Surplus Group देंगे। जैसे :-
General Reserve
All Type Reserve etc.
26. Sales Accounts :- व्यवसाय में जो मॉल (Goods) बेचा जाता है। उन सभी खातों को Sales Accounts Group दिया जाता है। तथा Sales Return के खातों को भी यही Group दिया जाता है। जैसे :-
Sales Local
Sales Interstate
Cash sales
Sales @ 10%
Export sales
Credit sales A\C
Trade discount on sales
Professional Fees
Sales of pipe
Sales Local Nil Rated
Sales Interstate Nil Rated
Sale To Consumer
Sale Return etc.
27. Secured Loans :- यदि व्यवसाय में हमने ऐसा कोई Loan लिया है। Bank को छोड़कर जिसमे कोई Security रखना होती है। तो उन सभी खातों (Ledgers) को Secured Loan Group देंगे। जैसे :-
Gold Loan
Debenture A\C
Loan from bank
SBI secured Loan
Car Finance Loan
Bajaj Finance Loan etc.
28. Stock-in-Hand :- व्यवसाय में Stock से संबधित खातों को Stock-in-Hand Group देंगे। जैसे :-
Opening Stock
Closing Stock etc.
29. Sundry Creditors :- व्यवसाय में जिन व्यक्ति, संस्था,फर्म या कंपनी आदि से हम उधार मॉल (Goods) खरीदते (Purchase) है। तथा जिन पार्टीओ को हमें पैसे देने होते है। उन सभी व्यक्ति, संस्था, फर्म या कंपनी आदि के खातों (Ledgers) को Sundry Creditors Group देते है।
Supplier Name
Krita institution Ltd.
Ganesh Pvt. Ltd.
Creditor A\C
30. Sundry Debtors :- व्यवसाय में जिन व्यक्ति, संस्था,फर्म या कंपनी आदि को हम उधार मॉल (Goods) बेचते (Sales) है। तथा जिन पार्टीओ को हमें पैसे लेने होते है। उन सभी व्यक्ति, संस्था, फर्म या कंपनी आदि के खातों (Ledgers) को Sundry Debtors Group देते है।
customer Name
Royal traders Dr.
Advance received from Customer
31. Suspense A/c :- यदि व्यवसाय में किसी Party का Payment या Receipt का पता नहीं होता है। तो ऐसे खातों को Suspense A/c Group देते है।
Party Suspense A/c
32. Unsecured Loans :- व्यवसाय में हमने यदि किसी Friends या रिश्तेदार से लोन लिया हैै। तो उन सभी के खातों को Unsecured Loan Group देंगे। जैसे :-
Loan Give to Friends
Loan from outside
Deposit Received from suman
Relatives and company Loan etc.
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